Gunjan Kamal

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जब ओखली में सिर दिया तो मुसलों से क्या डरना

अपने पड़ोस में रहने वाले सोहन के पंद्रह साल के बेटे को अपने आपसे ही बातें करते हुए देखकर सुनील से रहा नहीं गया और वह उसके पास जाकर बैठ गया और उसके तरफ मुस्कुराते हुए देखकर कहा "कृष! क्या बात है, कोई परेशानी है क्या? कुछ देर से तुम्हें देख रहा था अपने आप से ही बातें किए जा रहे हो। अपने इस भैया से तो तुम अपनी हर बात साझा करते आए हो लेकिन इस बार तो  अकेले अकेले ही बातें कर रहे हो।"


कृष वैसे तो था बहुत ही कम बोलने वाला बच्चा, अपने आप में ही रहने वाला लेकिन आज से एक साल पहले जब उसकी मुलाकात सुनील से हुई तब से वह बदलने लगा था।


सुनील भी कृष को अपने छोटे भाई जैसा ही समझता था और उसकी हर परेशानी को हल करने में उसकी हर संभव मदद भी करता था, कई बार तो पढ़ाई में कमजोर कृष को उसने मदद भी की थी।


कम वक्त में ही सुनील और कृष दोनों ही  एक - दूसरे को अच्छी तरह जानने और समझने लगे थे। एक - दूसरे का साथ उन्हें अच्छा लगता था। अभी दस दिन पहले जब सुनील को अपने ऑफिस के काम से शहर से बाहर जाना पड़ा था तब उसने कृष से कहा था कि उसे वापस आने में दस दिन लग जाएंगे और उसके बाद ही उसकी मुलाकात उससे हो पाएगी।


दस दिन पहले सुनील जब  गया था तब तक तो सब कुछ ठीक ही था लेकिन आज जब वह ऑफिस से आने के बाद कृष से  मिलने उस जगह पर गया जहां पर अक्सर दोनों मिलते थे और एक - दूसरे से बातें करते थे वहां पर पहुंचकर दूर से ही जब उसने कृष को अपने आप से ही बातें करते हुए देखा तो उसे कुछ तो संदेह हुआ कि बीते दस दिनों में उसके साथ ऐसा कुछ तो हुआ है जिसकी वजह से वह बहुत ही परेशान दिख रहा है।


सुनील उस वजह  को जानने की इच्छा से ही कृष से  बातें  कर रहा था  ताकि वह उसकी उस परेशानी को दूर कर सके, उसे यकीन था कि कृष अपनी परेशानी उसे अवश्य बताएगा।


"भैया! आप तो जानते ही हैं कि मेरे पापा मेरी पढ़ाई को लेकर मुझे कितना सुनाते रहते है? आपने कहा था इसीलिए मैं पढ़ाई में मन तो लगा रहा था लेकिन क्या करूं मेरा पढ़ाई में मन ही नहीं लगता है? आप जब यहां पर नहीं थे तब पापा ने एक दिन मुझे बहुत डांटा और मेरे सामने यह शर्त रख दी है कि यदि मैं बोर्ड की परीक्षा अच्छे नंबर से पास नहीं कर सका तो वह इस शहर को छोड़कर दूसरे शहर शिफ्ट हो जाएंगे और तुम ही बताओ भैया कि यदि पापा दूसरे शहर शिफ्ट होंगे तो मुझे भी उनके साथ जाना होगा और इस तरह मैं आपसे तो कभी भी नहीं मिल पाऊंगा इसीलिए मैं अपने आप से बातें करते हुए उसे हिम्मत दे रहा था कि मैं बोर्ड की परीक्षा अच्छे नंबर से पास करके पापा को दिखाऊंगा और अपने भैया के पास ही रहूंगा।" कृष ने सुनील के उससे पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा।


" जब तुमने ये निर्णय ले ही लिया है कि तुम्हें पढ़ाई करनी है जो कि तुम्हारे लिए अनगिनत मुसलों मेरा मतलब है कि मुसीबत से कम नही है, अभी तुम्हें देखकर और तुम्हारी बातें सुनकर एक मुहावरा याद आ रहा है कि जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना?" सुनील ने हॅंसते हुए कृष के बालों में हाथ फेरते हुए कहा।


" जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना? आपकी इस कहावत का अर्थ मैं नहीं समझ पा रहा हूॅॅं भैया।" कृष ने सुनील की तरफ देखते हुए उससे कहा।


सुनील ने मुस्कुराते हुए कृष की तरफ देखा और उसे समझाते हुए कहने लगा  "जब हम  किसी काम को करने का निर्णय या प्रण लेते हैं जैसे कि तुमने पढ़ाई करने का पढ़ लिया है ताकि तुम्हें बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक आ सके, तब  उस काम को करने में तुम्हें  जो भी समस्याएं आएंगी वह तुम्हारे लिए मुसल के समान होंगी और उस समस्याओं से  तुम्हें डरना नहीं होगा  क्योंकि जब हम किसी काम को करने का प्रण करते हैं तो हमारा ध्यान उस कार्य को पूर्ण करने में ही होना चाहिए और इसीलिए कहा जाता है कि जब ओखली में सिर दिया तो मुसलो से क्या डरना। अब जब तुमने ये प्रण ले लिया है तो इस प्रण  को पूरा करने में तुम्हारी राह में जो भी मुसल ( समस्याएं) आएंगे उससे निपटने में जितनी हो सके मैं तुम्हारी मदद करूंगा। अब तो समझ गया ना "

कृष ने मुस्कुराते हुए हाॅं में सिर हिलाया और सुनील के गले लग गया। 


छः महीने बाद कृष अपने हाथों में मिठाई का डब्बा लेकर सुनील के ऑफिस से आने का इंतजार कर रहा था और यह सोच कर खुश हो रहा था कि अब उसे अपने सुनील भैया से दूर नही जाना पड़ेगा।



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                                                       धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💗



#  मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता 

 


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3 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Feb-2023 06:40 PM

शानदार

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अदिति झा

14-Feb-2023 12:44 AM

Nice 👍🏼

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